Thursday 6 December 2012



तुम्हारी याद बनकर हर घड़ी तड़पाता  है 
ये वो वक़्त है जो रुकता ही नहीं 
ठहरता ही नहीं 
हर पल तुम्हारी याद बनकर 
सामने खड़ा हो जाता है 
-ममता भदौरिया 

उस दिन
तुम्हें रोक लेती
तो अच्छा था
ना तुम मिले
ना ये इंतजार
खत्म हुआ
-ममता भदौरिया


Sunday 21 October 2012



एक रुह जो दिल में उतरती जा रही है
क्यों मुस्कुराकर वो मुझे अपना रही है
-ममता भदौरिया 

Friday 19 October 2012



-ममता भदौरिया 
जो कभी सुनते नहीं थे
आज वो सुनने लगे
नित नये सपने सलोने
साथ वो बुनने लगे
फिर वही बातें पुरानी
रोज़ के किस्से कहानी
और घंटों बैठना
याद वो करने लगे
रूठना उनका मनाना
आज भी वो याद है
फिर मिलेंगे एक दिन
कोशिशें करने लगे
एक वादे को लिए
इस मोड़ तक तो आ गये
हैं मंजिलें जुदा जुदा
रास्ते कहने लगे.


हर रात की तरह यूँ ही जलती हूँ मैं
एक बार तो राहत देता हर रोज़ पिघलती हूँ मैं
-ममता भदौरिया 

Tuesday 9 October 2012

करें अगर कोशिश तो....


-ममता भदौरिया 

करें अगर कोशिश तो

जीने की वजह भी मिल जाएगी
कोई साथ चले ना चले
उम्मीद रखिये,
होंसला रखिये,
मंजिल खुद-ब-खुद चलकर
आपके क़दमों तक आएगी
ये उमस, ये तपिश,
ये पतझर के मौसम भी गुज़र जायेंगे
फिर से बहारें आएँगी
फिर कलियाँ मुस्कुरायेंगी
फिर आम लदेगा बौरों से
फिर कोयल शोर मचाएगी
एक ठंडी हवा का झोंका कुछ
कानों में कह जायेगा
उमस, तपिश को यहीं छोड़
वो सावन में ले जयेगा
सावन की बौछारों में तुम
तन मन खूब भिगो लेना
उम्मीदों को साथ में रखकर
सपने नये संजो लेना.

Sunday 7 October 2012


कुछ ऐसे सवाल हैं
जो सवालों पर सवाल हैं
वो जवाब क्या करे
जो खुद इक सवाल है
क्यूं नदी के किनारे मिलते नहीं?
क्यूं जमीं आसमां एक होते नहीं?
क्यूं सागर किनारे भी प्यासे हैं लोग?
क्यूं सूरज को दिन और
चांद को रात है
ये खामोशी में कही अनकही बात है.....

छुपना छुपाना जिन्दगी की रीत है
जो मिल गया वो जिन्दगी,
जो बिछड़ गया वो प्रीत है।
ये जानते हैं हम, फिर क्यूं मानते नहीं
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो खुद इक सवाल हैं???
-ममता भदौरिया

सफ़र जिंदगी का गुज़र ही गया
फासले मगर फिर भी कायम रहे.

-ममता भदौरिया 

दौर खामोशियों का यूँ ही चलता रहे
ना तुम कुछ कहो ना हम कुछ कहें
-ममता भदौरिया 

Thursday 4 October 2012


दर्द को आँखों में छुपा लेते हैं.....

-ममता भदौरिया 

दर्द को आँखों में छुपा लेते हैं 
चलो एक बार फिर से जी लेते हैं 

यहाँ समझी हैं कब किसने नजदीकियां 
चलो एक बार फिर दूरियां बढ़ा लेते हैं 

जहाँ मिल जाये दो पल की ख़ुशी 
चलो ऐसी जगह पनाह लेते हैं 

बिना दिल के भी इन्सान हुआ करते हैं 
चलो उन दिलों में धडकनें  डाल देते हैं 

फूलों से तो सभी दोस्ती किया करते हैं 
चलो हम काँटों के साथ मुस्कुरा लेते हैं 

है दूर बहुत मंजिल लेकिन 
चलो किसी को हमसफ़र बना लेते हैं



वो जब भी मिले.......

-ममता भदौरिया 

वो जब भी मिले एक याद बनकर मिले 
हमसे मिले तो एक बात बनकर मिले 

बातों बातों में कुछ ऐसी बात चली 
कि वो एक अनछुआ एहसास बनकर मिले 

जुबा से तो कभी कुछ कहते नहीं 
नज़र का ही एक इशारा बनकर मिले 

ये तो सभी जानते हैं कि दूरियाँ हैं 
वो दूरियों में भी नजदीकियां बनकर मिले 

हो कोई भी मौसम या कोई वक़्त हो 
वो झूमती सावन की घटा बनकर मिले

था मिलना और बिछड़ना उनसे एक इत्तेफाक
पर वो जब भी मिले एक खूबसूरत याद बनकर मिले

आँखों को भी हो गई है आदत उन्हें न देखने की
वो रातों को बंद आँखों में ख्वाब बनकर मिले

जो नज़र में हो कैद उनसे मिलाना है मुश्किल
वो स्याही में डुबे हुए लफ्ज़ बनकर मिले



Wednesday 3 October 2012


तेरे आने से आँखें छलक जाती हैं
तेरे जाने से आँखें छलक जाती हैं
जो नज़र आये तो ये बहक जाती हैं
ना नज़र आये तो ये तड़प जाती हैं
-ममता