Friday 19 October 2012



-ममता भदौरिया 
जो कभी सुनते नहीं थे
आज वो सुनने लगे
नित नये सपने सलोने
साथ वो बुनने लगे
फिर वही बातें पुरानी
रोज़ के किस्से कहानी
और घंटों बैठना
याद वो करने लगे
रूठना उनका मनाना
आज भी वो याद है
फिर मिलेंगे एक दिन
कोशिशें करने लगे
एक वादे को लिए
इस मोड़ तक तो आ गये
हैं मंजिलें जुदा जुदा
रास्ते कहने लगे.

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