Thursday 4 October 2012


वो जब भी मिले.......

-ममता भदौरिया 

वो जब भी मिले एक याद बनकर मिले 
हमसे मिले तो एक बात बनकर मिले 

बातों बातों में कुछ ऐसी बात चली 
कि वो एक अनछुआ एहसास बनकर मिले 

जुबा से तो कभी कुछ कहते नहीं 
नज़र का ही एक इशारा बनकर मिले 

ये तो सभी जानते हैं कि दूरियाँ हैं 
वो दूरियों में भी नजदीकियां बनकर मिले 

हो कोई भी मौसम या कोई वक़्त हो 
वो झूमती सावन की घटा बनकर मिले

था मिलना और बिछड़ना उनसे एक इत्तेफाक
पर वो जब भी मिले एक खूबसूरत याद बनकर मिले

आँखों को भी हो गई है आदत उन्हें न देखने की
वो रातों को बंद आँखों में ख्वाब बनकर मिले

जो नज़र में हो कैद उनसे मिलाना है मुश्किल
वो स्याही में डुबे हुए लफ्ज़ बनकर मिले



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