Sunday 7 October 2012


कुछ ऐसे सवाल हैं
जो सवालों पर सवाल हैं
वो जवाब क्या करे
जो खुद इक सवाल है
क्यूं नदी के किनारे मिलते नहीं?
क्यूं जमीं आसमां एक होते नहीं?
क्यूं सागर किनारे भी प्यासे हैं लोग?
क्यूं सूरज को दिन और
चांद को रात है
ये खामोशी में कही अनकही बात है.....

छुपना छुपाना जिन्दगी की रीत है
जो मिल गया वो जिन्दगी,
जो बिछड़ गया वो प्रीत है।
ये जानते हैं हम, फिर क्यूं मानते नहीं
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो खुद इक सवाल हैं???
-ममता भदौरिया

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